तवारीख इ मुख़्तसर -
परवेज़ , इक़बाल फ़िरोज़, युनूस दोस्त थे बचपन के, फिर परवेज़ के छोटे भाई मुस्तफा की इक़बाल से पहचान हो गयी, मुस्तफा का बचपन का दोस्त भरत भी मिल गया, फिर परवेज के असिस्टंट मोहम्मदगौस मुस्तफा को मिल गए, फिर टाइपिंग क्लास परवेज पास गए हुए ज़हीर कि मुलाक़ात एक शेर की सबब मुस्तफा से हुई, फिर वही क्लास के लिए आया शकील मिल गया। सभी पक्के छंद जमा हो गए।
इन सब में मुश्तरक़ा कड़ी है परवेज़ महान जो अपने आप को छंद कहलाने से कतराते है।और जिन्हे कभी भी छंदो के जलसों में नहीं देखा गया।
आइन्दा पन्नों पर हम बारी बारी सब का तआर्रूफ करेंगे इन्शाअल्लाह।
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